Gaura Gauri Geet- Johar Johar Mor Goura Gouri -Gitanjali Sahu

Gaura Gauri Geet- Johar Johar Mor Goura Gouri -Gitanjali Sahu

गऊरा गऊरी गीत- गऊरा गऊरी गीत छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध लोक उत्सव है। गऊरा हैं शिव तथा गऊरी हैं गौरी पार्वती। यह लोक उत्सव हर वर्ष कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या (दीपावली और लक्ष्मी पूजा के बाद) मनाया जाता है। इस पूजा में सभी जाति समुदाय के लोग शामिल होते हैं। दीपावली पूजा के दिन को ‘शुरुहुत्ति त्यौहार’ कहते हैं अर्थात् त्यौहार की शुरुआत। शाम चार बजे उस दिन लोग झुंड में गांव के बाहर जाते हैं और एक स्थान पर पूजा करते हैं। उसके बाद उसी स्थान से मिट्टी लेकर गांव वापस आते हैं। गांव वापस आने के बाद मिट्टी को गीला करते हैं और उस गीली मिट्टी से शिव-पार्वती की मूर्ति बनाते हैं। शिव है गऊरा – गऊरा है बैल सवारी और पार्वती याने गऊरी है सवारी कछुए की। ये मूर्तियां बनाने के बाद लकड़ी के पिड़हे पर उन्हें रखकर बड़े सुन्दरता के साथ सजाया जाता है। लकड़ी की एक पिड़हे पर बैल पर गऊरा और दूसरे पिड़हे पर कछुए पर गऊरी। पिड़हे के चारों कोनों में चार खम्बे लगाकर उसमें दिया तेल बत्ती लगाया जाता हैं। बड़े सुन्दर दृश्य है। रात को लक्ष्मी पूजा के बाद रात बारह बजे से गऊरा गऊरी झांकी पूरे गांव में घूमती रहती है। घूमते वक्त दो कुंवारे लड़के या लड़की गऊरा गऊरी के पिड़हे सर पर रखकर चलते हैं। और आसपास गऊरा गऊरी गीत आरम्भ हो जाते हैं नाच-गाना दोनों ही आरम्भ हो जाते हैं। गाते हुए नाचते हुए लोग झांकी के आसपास मंडराते हुए गांव की परिक्रमा करते हैं।

Gaura Gauri Geet- Johar Johar Mor Goura Gouri

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