जीवन संघर्ष की कहानी -पद्मश्री फूलबासन यादव जी (Smt. Phoolbasan Bai Yadav)
“डर मुझे भी लगता था – ग़रीबी से बेरोज़गारी से कुपोषण से नशे से लेकिन फिर मैंने अपनी बहनों को आवाज़ लगायी एक संकल्प समाज की सीरत बदलने के लिए संकल्प कुंठित मानसिकता और रूढ़िवादी परम्पराओं को उखाड़ फेकने का। आज सब कुछ सफल होता दिखता है” I यह कहानी है पद्मश्री फूलबासन बाई यादव की.. फूलबासन बाई बचपन में अपने माँ-बाप के साथ चाय के ठेले में कप धोने का काम करती ग़रीबी इतनी की जब घर में भोजन करने का समय आता तो माता-पिता कहते की आज एक ही समय का भोजन मिलेगा। कई बार तो हफ़्तों खाना नहीं मिलता था ।ग़रीबी के चलते कभी कभी तो महीनों नमक नसीब नहीं होता और एक ही कपड़े में ही महीने निकल जाते। 12 वर्ष की उम्र में फ़ूलबासन भाई की शादी एक चरवाहे से करवा दी गयी मानो कम उम्र में एक बड़ी ज़िम्मेदारी के कुए में इस मासूम बच्ची को धकेल दिया हो। कुछ साल में चार बच्चे हो गए लेकिन घर की आर्थिक स्थिति जस की तस थी अपने बच्चों को दो वक़्त का भोजन देने के लिए फूलबासन बाई दर दर अनाज माँगती लेकिन किसी एक ने नहीं सुनी । हर शाम अपने बच्चों को भूखे पेट देख फूलबासन ख़ून के आँसू रोती लेकिन इन चुनौतियों के सामने कभी समर्पण नहीं किया। Phoolbasan Bai Yadav was born in a socially backward family with meagre financial resources on 5 December 1969 at Sukuldaihan, a remote hamlet in the Rajnandgaon district of the Indian state of Chhattisgarh. She got married in childhood when she was 10 and had education only up to the seventh standard.
पद्मश्री फूलबासन यादव जी ने अमिताभ बच्चन और KBC से जुड़े अनुभव बताये